दुर्व्यवहार के बाद नारी , समाज और कानून
सुधाकर राजेन्द्र
आज हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं अखबार की सुर्खियां बन रही हैं. बलात्कार की घटनाओं मे काफी वृद्धि हो रही है. अपने देश में आरक्षी खोज एवं विकास ब्यूरों के आँकड़ो के अनुसार प्रति दो घंटे के भीतर एक बलात्कार की घटना घट रही है. यह संख्या पिछले दो दशको की तुलना में दूनी है.
किसी युवती के शारीरिक तथा मानसिक विकास पर बलात्कार की घटना का क्या प्रभाव पड़ता है इस घटना के बाद कौन-कौन सी समस्याएं जन्म लेती हैं इस संबंध् में डॉ. वी राघवन ने बलात्कार की शिकार युवती तथा बलात्कारी की मानसिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए कुछ विचारोतेजक परिणाम घोषित करते हुए लिखा है- ‘पुलिस के हाथों पकड़े जाने पर भी बलात्कारी अधिकतर केसों में फंसने से सापफ तौर पर बच कर निकल जाता है. वह कानून को अंगूठा दिखाने में इसलिए सफल हो जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम तो बलात्कार की शिकार युवती के अभिभावक इस अपराध् की रपट थाने में दर्ज कराने में सापफ तौर पर मुकर जाते हैं. कारण कि अभिभावक या माता-पिता का यह मानना होता है कि क्या बेटी का सुरक्षित कौमार्य पुलिस या कानून लौटा देगी?
ऐसी घटनाओं में परिचित युवकों मित्रों और शुभ-चितकों के ही हाथ पाये जाते है. जिनके खिलाफ थाने में रपट लिखवाकर बेटी की बदनामी तथा उन्हें अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा खोने का भय सताने लगता है, इसलिए भी लोग अपराधी के विरूद्ध थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने में कतराते हैं.
यदि बलात्कारी को पुलिस कानूनी तौर पर सजा दिलाने में कामयाब हो भी जाती है तो छूटने के बाद अपराधी देख लेने की धमकी देना नहीं भूलता, इसलिए कुछ लोग नहीं चाहते हैं कि यह मामला पुलिस और कोर्ट कचहरी तक पहुंचे ऐसे अधिकाश केसों में वकील बलात्कार की शिकार युवती से न सिर्फ उत्तेजक और आपतिजनक सवाल कर परेशान करते हैं बल्कि यह साबित करने का प्रयास भी करते है कि घटना के लिए जिम्मेवार युवती हीं है, इसलिए चरित्राहीन और बदचलन वही मानी जाती है, ऐसी परिस्थिति में बलात्कार का दुख भोगती युवती की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस पर क्या बीतती होगी? जो युवती बलात्कार की पीड़ा और तनाव को भूलना चाहती है, उसे कौमार्य खोने और अपमान सहने के लिए विवश करना कहाँ तक न्यायसंगत है? एक युवती के मन में जबरन बोया गया पराजय का यह बीज किस प्रकार की चेतना जागृत करेगा, यह एक विचारणीय प्रश्न है, जिसे सभ्य समाज के प्रबुदध व्यक्तियों को गंभीरतापूर्वक विचार कर एक सर्वसम्मत निर्णय तक पहुँचने की आवश्यकता है.
डॉ. राघवन के अनुसार अधिकाश बलात्कार की घटनाएं दोपहर 12 बजे से रात्रि आठ बजे के बीच होती है जिसमें 20 से 25 वर्ष तक के बलात्कारी होते हैं, अपराधी अपनी पूर्व योजना के अनुसार जब बलात्कार करने में सपफल हो जाता है तब वह गहरे तनाव में होता है, इसलिए उसे कुछ भी कर गुजरने में हिचक नहीं होती, जबकि बलात्कार के बाद युवती पारिवारिक तथा सामाजिक दोनों ही स्तर पर मानसिक यंत्राणा और कटाक्ष झेलने के लिए विवश होती है. हमारा दंड और न्याय विधन भी इस मामले में इतना पेचीदा है कि यदि कोई नारी न्याय पाना भी चाहती है तो उसे काफी वक्त लग जाता है. अधिकाश ऐसे मुकदमों का निर्णय होने में बरसों गुजर जाते है, इस बीच बलात्कारी न सिर्फ जमानत पर छूट जाता है बल्कि उस युवती के परिवार को मुकदमा वापस लेने के लिए अपनी अपराधी प्रवृति का प्रदर्शन करते हुए दबाब भी डालता है, इस बलात्कार से संबंधित अनेक सबूत भी मिटा दिये जाते हैं या सबूतों
में फेर बदल कर केस को अत्यंत कमजोर बना दिया जाता है.
इसका परिणाम यह होता है कि घर परिवार के उपेक्षित व्यवहार से पीड़ित युवती अपने भीतर आत्मविश्वास की घोर कमी अनुभव करने लगती है. स्वयं को प्रत्येक स्तर पर असुरक्षित पाती है. उसे कुंठाएं तथा हीन भावनाएं जकड़ लेती हैं, कारण कि ऐसी घटनाओं की शिकार युवती के प्रति अधिकाशतः परिवारों में बड़े बुजुर्गो का दृष्टिकोण भी व्यवहार के स्तर पर असहयोगात्मक ही होता है. उनके साथ सहानुभूति पूर्ण रवैया नहीं अपनाया जाता, बल्कि परिवार वाले औरों की तरह उसे ही दोषी ठहराने से नहीं चूकते. नारी या युवती के मन में ऐसी हीन भावना घर कर जाती है कि वह भी परिस्थितियों में स्वयं को विवशतावश दोषी मान लेती है, क्योंकि सभी उसे इसी दृष्टिकोण से देखते है. इस प्रकार बलात्कार की यातना भोग चुकी नारी या युवती इसके लिए हर प्रकार से दोषी ठहरा दी जाती है. यह व्यवस्था आज भी एक चुनौती है, जिसका समाधन अत्यंत आवश्यक है।
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