राष्ट्रभाषा हिन्दी का विरोध क्यों ?
सुधाकर राजेन्द्र मो0- 9431083378
राष्ट्रभाषा हिन्दी का विरोध करने वाले वे लोग हैं जो भारतीय सरकार को कोई न कोई उलझनों में पड़ी देखना चाहते हैं। जैसे
- विदेशी गुप्तचर और राजनीतिक दलों के कुछ नेता, दूसरे वे व्यापारी हैं जिनकी करोड़ों की आय भारत से अंग्रेजी माध्यम से है।
तीसरे वे जो अंग्रेजी संस्कृति के प्रचारक हैं और अंग्रेजी के माध्यम से बौधिक
दृष्टि से भारत को गुलाम देखना चाहते हैं। चौथे वे जिनका उर्दू और उसकी सहचरी
हिन्दी से द्वेष है। पांचवें वे अहिन्दी भाषी जिनके सामने हमेशा यह भय रहता है कि
हिन्दी वाले उनकी नौकरियाँ छीन लेंगे और उनकी भाषा को कुचल देंगे। छठे वे कर्मचारी
और बाबू जिन्हें अंग्रेजी दफ्रतरी टिप्पणी लिखने का अभ्यास और जीविका का साध्न है।
सातवें वे मंत्री और
उच्चाधिकारी जिनकी प्रतिष्ठा मात्रा अंग्रेजी के कारण है या अंग्रेजी के
अलावे दूसरी अन्य भाषा नहीं जानते, आठवें वे जो
राष्ट्र को छिन्न भिन्न करना चाहते हैं। नौवे वे जो अपना-अपना दावा करते हैं कि हमारी भाषा श्रेष्ठ है हमारा साहित्य समृद्ध है, और हिन्दी दरिद्र भाषा है। दसवें वे जो आजादी के बाद रंक से राजा हो गये
और अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाकर विदेश भेजना चाहते हैं और अन्त में
ग्यारहवें वे जिनका कोई न कोई स्वार्थ अंग्रेजी से जुड़ा हुआ है जैसे अंग्रेजी
पत्राकार और ईसाई प्रचारक।
यों तो राष्ट्रभाषा हिन्दी विरोधियों की
संख्या अधिक नहीं है, फिर भी ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा राजनीतिक, शासन, पत्राकारिता आदि
जीवन के अनिवार्य कार्यों में ऐसे लोगों का अधिकार पूर्वक कब्जा है। विगत पंद्रह-बीस वर्षों से अन्तर्राष्ट्रीयता के नाम पर ये स्वार्थी नीतियों का आलम्बन
करते आ रहे हैं जिस समस्या को संविधन बनाने वाले महात्माओं ने सुलझा दिया था उसे
इन विरोधियों ने उलझा दिया है। संविधन के आज्ञाओं का उल्लंघन कर सत्ताधरियों ने
इसकी पवित्रता, सर्वमान्यता और महत्ता के समक्ष जटिल प्रश्न
खड़ा कर दिया है। अंग्रेजी को तो 26 जनवरी 1965 से हमारे देश से उठ जाना चाहिए था, किन्तु
नये कानून के द्वारा उसे अनन्तकाल के लिए सहचरी राजभाषा बना दिया गया। वह अनिवार्य
भाषा के रूप में शिक्षा के हरेक स्तर पर आरूढ़ रहेगी। लोकतंत्रात्मक देश में जनता
की इच्छा का इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है?
हिन्दी के बिना जनतंत्रा की बात धोखा है, हिन्दी राष्ट्रीय एकता की भाषा है। हिन्दी भारत के लिए एक वरदान है।
हिन्दी सेवा देश भक्ति है। हिन्दी भारत की अमरवाणी है, हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा है इसका विरोध क्यों।
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