मागधी लोक संगीत का संरक्षण
सुधाकर राजेन्द
9431083378
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लोक-कलाओं की विविधता के लिए प्रसिद्ध मगध के लोक जीवन में
लोक संगीत का विशेष महत्व है। आधुनिकता के होड़ में लोक गायक और वादक कलाकार धीरे- धीरे
लोप होते जा रहे हैं। मगध के जनजीवन के लोक कलाकार आधुनिक होते समाज में अपनी
भूमिका ठीक से नही निभा पा रहे हैं। जो कलाकार लोक संगीत के स्वर को सदियो से
संरक्षित करते आए है आज इस कला को छोड़ने के लिए विवश हैं जिनका संरक्षण आवश्यक है।
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सुधाकर राजेन्द्र |
एक समय था कि लोक
कलाकारों की आम जन जीवन में बड़ी
इज्जत और मांग थी। विशेष समारोह और धर्मिक अवसरों
पर ये कलाकार अपने लोक संगीत और वाद्ययंत्रो के साथ लोकगीत और नृत्य का हुनर दिखा
कर धन राशि के साथ पुरस्कार अर्जित करते थे। लोक गीतो में संस्कार गीत, पर्व गीत, श्रम गीत, प्रेम मनोरंजन
गीत, गाथा गीत और
ट्टतु गीत प्रमुख है। लोरिकायन, विरहा, अल्हा, भरथरी, विहुला, सारंगा आदि मगध के चर्चित लोक गाथा गीत हैं। बारहमासा, कजरी, चैता होली, चौहट मगध के
ख्यात टटतु गीत है। विवाह,
तिलकोत्सव और
जन्मोत्सव के अवसर पर गाए जाने वाले मगध के संस्कार गीत है। रोपनी और जाँता पिसते
या पफसल काटते समय गाए जाने वाले गीत श्रम या क्रिया गीत कहलाते हैं। इसके अलावे
प्रेम और मनोरंजन के अनेका अनेक गीत मगध की लोक संस्कृति के अमूल्य धरोहर हैं पर फिलहाल
इन धरोहरो को जीवित और इस कला को आगे बढ़ाने की जरूरत हैं।

मगध की मुख्य भाषा
मगही-मागधी है। इसी भाषा को मगध वासी मातृभाषा की संज्ञा देते हैं क्योकि इसी भाषा
को जन्म से लेकर मरण तक अपने मुख से मुखरित करते रहे है। मगध का लोक कलाकार जब
अपनी मगही भाषा में विराहा का अलाप लेता है तो उसके स्वर को सुनकर कोई भी बटोही
थोड़े देर के लिए ठिठक जाता हैं।
आ कहमें चमकई तलवार,
कहमां में चमक हई पिया के
पगरिया
कि कहमां में विंदिया
हमार?
मगही भाषा का मिठास और इसके शब्दो में भाव सम्प्रेषण की
क्षमता लोगो के दिल को आहलादित कर देती है यही कारण है कि लोक गायक श्रोताओ के
दिलो में बस जाते हैं। इस लोक संगीत का संरक्षण आवश्यक है।
मगध के लोक बाद्य यंत्रो
में ढोलक, झाल, करताल, हारमोनियम, वांसुरी, नगाड़ा, तासा खंजड़ी, चिमटा आदि का
प्रमुख स्थान हैं। ढोलक लोक जीवन के हर संस्कार से जुड़ा हुआ वाद्य यंत्रा है। मगध
के गाँवों में ढोलक के एक से एक अच्छे वादक कलाकार है। इनकलाकारो में कुछ ऐसे
कलाकार है जो विलकुल निरक्षर होते हुए भी लोक गायन के स्थाई अन्तरा आरोह
अवरोह के विशेषज्ञ है। उनकी वादन कला में कोई सर्मज्ञ कलाकार भी त्रुटी नही निकाल पाते। पुरूषों के अलावे मगध में ढोलक बादन कला में महिलाए भी आगे आ रही है जो लोक कला के लिए शुभ है। ढोलक
के अलावे मगध का चर्चित वाध्य यंत्रा है झाल जिसे लोग जोड़ी भी
कहते है। होली चैतार और किर्तन मंडली में जब वृताकार बैठकर मगध के लोक कलाकार अपनी
कला की प्रस्तुती झाल बजाकर करते है तो उसकी शमा देखते ही बनती है। देखने में
सामान्य सा लगने वाला इस वाध्य यंत्रा के कलाकार जब अपनी कला प्रस्तुत करते है तो
इसकी स्वर लहरियां हृदय को तरंगित किए बिना नही रहती। इसी प्रकार मगध जनपद में लोक
संगीत को गति देने वाले तमाम वाध यंत्रो की स्वर लहरियां जन जीवन मे आह्लाद भरती
रही है।
मगध महाजनपद में पुरूषो
के अलावे महिला कलाकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मगधंचल की धरती पर
आंचलिक महिलाओ की स्वर लहरियों से कुछ ऐसे लोक गीतों की रचना हुई हैं जो अमर गीत
हैं जिसमें ‘मारवउ रे
सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरझाए’, ‘निमियां के डार मईया लागल हिड़ोलवा से झूमी-झुमी’, ‘शिव के दुलारी
गंगा निरमल धार गे माई’ के अलावे
दर्जनाधिक संस्कार गीत हैं जो सदियो से परम परागत मुखरित होते चले आ रह हैं, जिसमें ‘केकर रोवल
गंगा वही गेलई
केकर रोवल समुन्दर हे’, चौहट गीतो में ‘कहमां ही बरसल मयगर हथिया या सॉप छोड़ले साँप केचुल गंगा मईया छोड़ले अरार’ आदि प्रमुख गीत हैं।
अवरोह के विशेषज्ञ है। उनकी वादन कला में कोई सर्मज्ञ कलाकार भी त्रुटी नही निकाल पाते। पुरूषों के अलावे मगध में ढोलक बादन कला में महिलाए भी आगे आ रही है जो लोक कला के लिए शुभ है। ढोलक

केकर रोवल समुन्दर हे’, चौहट गीतो में ‘कहमां ही बरसल मयगर हथिया या सॉप छोड़ले साँप केचुल गंगा मईया छोड़ले अरार’ आदि प्रमुख गीत हैं।
आज मगध महाजनपद के युवाओं
का दायित्व है कि फिल्मी चकाचौध और आधुनिकाता की प्रदिूषित हवा को त्याग कर अपने
पूर्वजों की विरासत लोक संगीत को संरक्षित करते हुए इसे मंजिल की ओर पहुचाने में
अपनी भूमिका सुनिश्चित करें, तभी मगध का लोक संगीत मंजिल तक पहुंच सकता है।
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